" उस रास्ते पर चलते चलते घूंट रहा था मेरा दम
फिर भी बढ़ाता ही रहा में तुम्हारी ओर कदम "
आसान नहीं था सफ़र तुम तक पहुंचने का फिर भी हम चल पडे थे अपने मुकाम से दूर कहीं अंजान रास्तों पर
हर दिन नई नई तकलीफे आती थी साथ फिर भी कदम बढ़ाए जा रहे थे हम
ना रहा था ज़ोर मेरे पांव में फिर भी चल रहा था वो घाव ले कर। शरीर के घाव तो सोचा था कि भर जाएंगे पर दिल के घाव का क्या करे?
यूं तो हम सख्त हुआ करते थे पर तुम्हारे मामले में हम खो रहे थे सब जोश।
घुंटने लगा था दम पर फिर भी बढ़ा रहे थे हम कदम।
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