Jazbaat aur uljhan - Inscape Ink

 
" समेटू जितना उतना ही ज्यादा उलझते है
ये जज्बात जो है वो मेरी समझ से परे है "


पहले सब सही हुआ करता था
में अपने में संभला हुआ करता था

फिर एक दिन में तुमसे मिला
फिर शुरू हुआ जज्बातों का सिलसिला

कुछ पल के लिए सब अच्छा था सब नया था
पर फिर हमने अपना चेन भी तो वही खोया था

धीरे धीरे सब उलझने लगा
में खुद में ही बिखरने लगा

जज्बातों के चक्रव्यूह में में खुद ही फसने लगा
 जज्बात जब मेरे मुझमें ही उलझने लगे

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