दो अजनबी मिल गए किसी राह पर
पर किसी ने देखा नहीं एक दूसरे को आंख उठा कर
मंजिल भी अलग था रास्ता भी अलग था
शायद उन दोनों का मिलना भी नसीब था
उस दिन शायद मिले होंगे इत्तेफाक से
पर अब तो हर रोज मिल रहे थे नसीब से
फिर एक दिन कर की दोनो ने बात
और शुरू हो गई उनकी मुलाकात
अलग था दोनों का मंजर
फिर भी शुरू हो गया प्यार का ये सफ़र
वो सूरज की रोशनी सी
और में रात के अंधेरे सा
मिल गए दोनो एक दफा
तो हुआ नज़ारा रंगीन शाम सा
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