मंजिल तलाश में रास्ते पर कदम बढ़ाए जा रहा हूं
पता नहीं में कितनी दूर जा रहा हूं
खुद को ढूंढने के लिए ही शायद निकला था
और इस सफर में कई बार फिसला था
कठीन था रास्ता पर पार करना ही था
शुरुआत की थी तो आगे चलना ही था
कई बार मेरे डगमगाए थे कदम
पर ना रुकने की खाई थी कसम
फिर?
फिर क्या!
हद से ज्यादा दूर निकल गया
अब मैं अपना ही घर भूल गया
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